गोवा हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश पारित करते हुए दक्षिण गोवा के पुलिस अधीक्षक (SP South Goa) को यह सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं कि अदालत के आदेशानुसार अवैध निर्माण को गिराया जाए। अदालत ने स्पष्ट कहा कि न्यायिक आदेशों के क्रियान्वयन में किसी भी प्रकार की बाधा बर्दाश्त नहीं की जाएगी और प्रशासनिक मशीनरी को पूरी निष्ठा से अदालत के निर्देशों का पालन करना होगा।
वा में लंबे समय से अवैध निर्माण और भूमि उपयोग से जुड़े मामलों पर अदालत की सख्त नजर बनी हुई है। कई बार स्थानीय निकाय और विभाग ढांचों को गैरकानूनी घोषित तो कर देते हैं, लेकिन राजनीतिक दबाव, प्रशासनिक सुस्ती या स्थानीय विरोध के कारण उन पर कार्रवाई नहीं हो पाती। इस बार भी मामला कुछ ऐसा ही था, जहाँ एक न्यायालय ने अवैध निर्माण को ध्वस्त करने का आदेश दिया था, लेकिन उसे लागू करने में बाधाएँ खड़ी हो रही थीं।
मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि अवैध निर्माण गिराने का आदेश तो पहले ही जारी हो चुका था, लेकिन जमीनी स्तर पर इसे लागू नहीं किया जा रहा है। स्थानीय प्रशासन ने ढांचा तोड़ने में ढिलाई बरती और बार-बार कार्रवाई टाल दी। यही वजह थी कि न्यायालय को स्वयं हस्तक्षेप करना पड़ा और पुलिस विभाग को सीधे निर्देश जारी करने पड़े।
हाईकोर्ट ने इस देरी पर कड़ा रुख अपनाया और कहा कि न्यायालय के आदेशों को लागू करने में किसी भी तरह की बाधा या टालमटोल गंभीर अवमानना (Contempt of Court) की श्रेणी में आती है। अदालत ने चेतावनी दी कि यदि भविष्य में भी आदेशों की अनदेखी की गई, तो संबंधित अधिकारी व्यक्तिगत रूप से जिम्मेदार माने जाएंगे।
अदालत ने दक्षिण गोवा के पुलिस अधीक्षक को आदेश दिया कि वे व्यक्तिगत रूप से इस कार्रवाई की निगरानी करें और सुनिश्चित करें कि अवैध ढांचे को तोड़ा जाए। साथ ही, पुलिस बल मौके पर मौजूद रहकर प्रशासनिक अधिकारियों को सुरक्षा और सहयोग उपलब्ध कराए।
कानून विशेषज्ञों के अनुसार, किसी भी अदालत का आदेश अंतिम और बाध्यकारी होता है। यदि प्रशासनिक तंत्र आदेशों को लागू करने में विफल रहता है, तो यह न केवल कानून व्यवस्था को कमजोर करता है बल्कि आम जनता का न्यायपालिका पर से भरोसा भी डगमगाता है। इसलिए अदालत ने पुलिस तंत्र को इसमें शामिल करके यह स्पष्ट कर दिया है कि अब ढिलाई की कोई गुंजाइश नहीं बचेगी।
स्थानीय नागरिकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने अदालत के इस कदम का स्वागत किया है। उनका कहना है कि अक्सर अवैध निर्माण वर्षों तक खड़े रहते हैं, जबकि अदालतें उन्हें गिराने का आदेश देती हैं। इस वजह से न केवल पर्यावरण और शहरी नियोजन को नुकसान पहुंचता है, बल्कि कानून का डर भी खत्म होता जाता है। अदालत का यह रुख लोगों में विश्वास जगाता है कि न्यायपालिका अपने आदेशों के पालन को लेकर सख्त है।
कई बार ऐसे मामलों में स्थानीय स्तर पर राजनीतिक हस्तक्षेप भी सामने आता है। अदालत के इस फैसले ने राजनीतिक दबाव को दरकिनार कर दिया है और प्रशासनिक अधिकारियों को स्पष्ट संदेश दिया है कि कानून के सामने सभी बराबर हैं। किसी भी तरह के प्रभाव या दबाव के बावजूद, आदेश का पालन अनिवार्य है।
इस आदेश के बाद गोवा में चल रहे अन्य अवैध निर्माण मामलों पर भी असर पड़ सकता है। अब स्थानीय निकायों और प्रशासनिक अधिकारियों को यह समझना होगा कि अदालत के आदेश को अनदेखा करना उनके लिए गंभीर परिणाम ला सकता है। इसके चलते भविष्य में कार्रवाई तेज होने की संभावना है।
हाईकोर्ट का यह फैसला केवल एक ढांचे को गिराने से जुड़ा आदेश नहीं है, बल्कि यह प्रशासनिक तंत्र को चेतावनी भी है कि अदालत के आदेशों की अवमानना किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं होगी। दक्षिण गोवा के पुलिस अधीक्षक को सीधे जिम्मेदार ठहराकर अदालत ने यह संदेश दिया है कि न्यायिक आदेशों का सम्मान करना अनिवार्य है और इसे लागू करने में कोई भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।









