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मुलगांव में पारंपरिक ‘नव्यांचे’ उत्सव धूमधाम से मनाया गया, ग्रामीणों की उमड़ी श्रद्धा और आस्था

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गोवा के बार्देश तालुका स्थित मुलगांव में इस वर्ष भी पारंपरिक ‘नव्यांचे’ उत्सव बड़े हर्ष और उत्साह के साथ मनाया गया। यह धार्मिक और सांस्कृतिक पर्व ग्रामीण समाज के लिए न सिर्फ आस्था का प्रतीक है बल्कि आपसी एकता और परंपरा को जीवित रखने का माध्यम भी है।

‘नव्यांचे’ उत्सव मुलगांव और आसपास के ग्रामीणों के लिए बेहद खास माना जाता है। इसका आयोजन हर साल पारंपरिक तरीके से किया जाता है। यह उत्सव विशेष रूप से गांव के नवविवाहित दंपतियों और नवागंतुकों की भागीदारी से जुड़ा होता है, जिन्हें सामूहिक रूप से मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना करनी होती है। इसी वजह से इसे “नव्यांचे” अर्थात “नव आगंतुकों का उत्सव” कहा जाता है।

यह परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है और माना जाता है कि इस उत्सव के आयोजन से गांव में समृद्धि, शांति और सामाजिक समरसता बनी रहती है।

इस बार भी मुलगांव के प्रसिद्ध मंदिर प्रांगण में सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी। ग्रामीणों ने पारंपरिक वेशभूषा में सजधज कर भाग लिया। ढोल-ताशे, शंख-घंटों की ध्वनि और मंत्रोच्चारण से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा।

मंदिर के पुजारियों द्वारा विशेष पूजा का आयोजन किया गया, जिसमें देवी-देवताओं को भोग अर्पित किया गया। नवविवाहित जोड़ों और नववर्ष में पहली बार गांव में आने वाले परिवारों ने सामूहिक आरती में भाग लिया। माना जाता है कि इस पूजा से परिवारों पर देवी-देवताओं का आशीर्वाद बना रहता है।

पूरे दिन उत्सव का माहौल देखने को मिला। बच्चों और युवाओं के लिए सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। गोवा की लोकधुनों और पारंपरिक नृत्यों ने कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए। महिलाओं ने सामूहिक रूप से ‘फुगड़ी’ नृत्य प्रस्तुत किया, जबकि पुरुषों ने पारंपरिक ढोल और ताशे की थाप पर नृत्य कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

शाम के समय मंदिर परिसर में लोककला पर आधारित नाटक का मंचन हुआ, जिसमें ग्रामीण जीवन और परंपराओं का सुंदर चित्रण किया गया। यह नाटक न सिर्फ मनोरंजन का साधन बना बल्कि दर्शकों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से भी जोड़ गया।

‘नव्यांचे’ उत्सव का सबसे बड़ा पहलू यह है कि यह समाज को एक सूत्र में पिरोता है। इसमें हर वर्ग और हर परिवार की भागीदारी होती है। ग्रामीण एक-दूसरे के घर जाकर मिठाइयाँ और प्रसाद बांटते हैं, जिससे आपसी भाईचारा और अधिक मजबूत होता है।

इस बार उत्सव में करीब दो हजार से अधिक श्रद्धालुओं ने भाग लिया। कई परिवार जो अन्य राज्यों या विदेशों में रहते हैं, वे भी विशेष रूप से इस अवसर पर मुलगांव लौटे। यह परंपरा न केवल धार्मिक विश्वास को जीवित रखती है बल्कि गांववासियों की भावनात्मक एकता को भी सुदृढ़ करती है।

इस वर्ष उत्सव में पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया गया। मंदिर समिति ने प्लास्टिक के उपयोग पर रोक लगाई और प्रसाद के लिए केवल पत्तों और पर्यावरण अनुकूल सामग्री का इस्तेमाल किया। युवाओं ने भी पौधारोपण कर यह संदेश दिया कि परंपरा के साथ-साथ प्रकृति की रक्षा करना भी समाज की जिम्मेदारी है।

इस उत्सव में स्थानीय नेताओं और गणमान्य व्यक्तियों ने भी भाग लिया। उन्होंने ग्रामीणों को संबोधित करते हुए कहा कि ऐसे उत्सव हमारी सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखते हैं। साथ ही यह युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं कि वे अपनी परंपराओं को भूलें नहीं।

रात को भव्य आरती और महाप्रसाद वितरण के साथ उत्सव का समापन हुआ। हजारों श्रद्धालुओं ने एक साथ प्रसाद ग्रहण किया। इस सामूहिक भोजन में सभी जाति और वर्ग के लोग शामिल हुए, जिससे सामाजिक समानता और एकता का संदेश प्रसारित हुआ।

मुलगांव का ‘नव्यांचे’ उत्सव सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता का जीवंत उदाहरण है। यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती आ रही परंपरा आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी वर्षों पहले थी। ग्रामीणों की श्रद्धा, उत्साह और एकजुटता इस बात का प्रमाण है कि भारतीय समाज अपनी जड़ों और परंपराओं से गहराई से जुड़ा हुआ है।

Goa Khabar Nama
Author: Goa Khabar Nama

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